संदेश

सुख ईश्वर की दया है, तो दुख उनकी कृपा

        भगवान की दया सुखों और दुखों के बीच देखी जा सकती है, इन दोनों का समन्वय उचित ही हुआ है. सुख दुख के दो पहियों पर ही जीवनरूपी रथ ठीक तरह से चल सकता है. दोनों की सुविधा देकर भगवान ने हमारे ऊपर दया और कृपा की दुहरी अनुकंपा की है.          सुख इसलिए है कि उसके सहारे हमें हंसने, प्रमुदित होने का अवसर मिले और वैसे ही अवसर अधिक उपार्जित करने के लिए, अधिक प्रयास करने की प्रेरणा मिले. सत्कर्मों के सत्परिणाम पर हमारा विश्वास सुदृढ़ होता चला जाये.          दुख इसलिए है कि हमें कठिनाइयों से जूझने का और उन्हें नगण्य समझने का अभ्यास बढ़े, कठिनाईयों से रहित किसी का भी जीवन नहीं हो सकता. उनसे लड़ना उतना कठिन नहीं है बल्कि सच तो यह है कि जटिल परिस्थितियों से निपटने में मनुष्य के साहस, आत्मविश्वास, पौरुष, धैर्य जैसे अनेक सद्गुणों को विकसित करने का लाभ मिल जाता है और मनुष्य इतना पराक्रमी बन जाता है कि आगे चलकर बड़े काम कर सके.          माता बच्चे को अनिच्छापूर्वक डॉक्टर के पास तब ले जाती है, जब उसके फोड़े का बढ़ता हुआ मवाद सारे हाथ को सड़ाता हुआ दिखता है. ऑपरेशन के समय थोड़ा कष्ट तो जरूर होगा, पर ब